Monday, January 18, 2010

हरसिंगार........

# # #
हरसिंगार
हो तुम
निकट
प्रेमियों की
वफाओं के........

याद
दिलाते हो
तुम
शहजादी
पारिजातका को
ठुकराया था
जिसको
प्रेमी रवि ने
और
हुई थी
व्यथित वो
राजकुमारी
और
गँवा दी थी
जान
जिसने
अपनी
और
पैदा हुए थे
तुम
भस्म
उसकी से .......

खिलते हो
तुम
रात के
अंधेरों में
और
झर जाते हो
तुम
बेवफा महबूब
सूरज के
आने से पहले
और
चूम लेते हो
तुम
जमीं को
होने को
भेंट
प्रभु को......

No comments:

Post a Comment