Wednesday, May 5, 2010

खींचतान....

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बढे
अगन
गगन की
ओर,
बहे
नीर
संग संग
ढलान के,
नहीं
हो सकता
जगत
स्थिर ,
बिना
इस
खींचतान के ...

(मेरी अधिकांश प्रयास प्रेरित है राजपूताना की माटी की बुधिमत्तापूर्ण बातों से)

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