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कैसा धौंसबाज़
आन बैठा है
भीतर मेरे
सिद्धांतों और
नियमों के
नाम पर
सदैव
जमाता रहता है
धौंस,
करता है
सब कुछ
बहुत
विवेक से,
जताता है
अफ़सोस भी कि
व्यथित होते हैं
दूसरे
इस से
मगर ;
"क्या करूँ मैं ?'
मेरे अंतर का
यह हिस्सा
कायर है
छुपा लेता है
"जो सही है" को
ताकि मुझे
नहीं स्वीकारना पड़े
कि
मैं दूसरों को
पीड़ित करने की
रखती हूँ
गहरी इच्छा...
(धौंसबाज़=गुंडा/रंगबाज)
(Inspired by a philosophical article by an American Writer)
Saturday, May 8, 2010
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