Tuesday, May 25, 2010

पलायन...

वाकया था
रात
का

सोये थे
नींद के
आगोश में
यशोधरा और
राहुल...

छुप कर
आँख चुरा कर

जीवन संगिनी
एवम्
वत्स से
कर गये थे
प्रस्थान
प्रवंचक की तरहा
कुंवर सिद्धार्थ...
तलाश में
उस सत्य की
नहीं छुप
सकता जो

किसी भी
जागरूक
नयन से....

बोधि वृक्ष तले
सिद्धार्थ
हो गये थे
बुद्ध
हासिल कर
ज्ञान
आत्मा का,
पदयात्रा
कर
पहुंचे थे
फिर से
करीब
यशोधरा
के
कहने सिर्फ यही:
"मुझे ज्ञान
प्राप्ति हेतु
नहीं ज़रुरत थी
पलायन की.. "

यही था
सत्य
जिसे
स्वीकारने का
साहस
कर सकते थे
केवल
गौतम
क्योंकि
प्राप्त था
उनको
बुद्धत्व
और
सुन कर
इसी
सत्य को
यशोधरा
और
राहुल
हो गये थे
निर्मल
भूल कर
अपना क्षोभ
एवम्
आक्रोश....

गुंजरित कर
उदघोष
"बुद्धं शरणम गच्छामि"
हो गये थे
दीक्षित
बन कर
भिक्षुक,
माँ और पुत्र
और
घटित हुआ था
"धम्मं शरणं गच्छामि "
"संघं शरणं
गच्छामि"



(नायेदा आपा को समर्पित)

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