Friday, May 14, 2010

परे मानकों से...

नर और नारी के मध्य
होता है
कुछ ऐसा
जिसे नहीं
कर पाती
अनुभव
पांचो इन्द्रियां...

श्रुत है
किन्तु मौन,
सुंगंध और
स्वाद है
शून्य का,
स्पर्श है
निराकार का,
अदृश्य है
नयनो से,
अपरिमेय है
उसकी उच्चता
विस्तार,
गहनता एवम्
तौल,
शब्दों से
अभिव्यक्त है
किंचित
तथापि नहीं है
वो मेय...

देय है किन्तु
अर्जन नहीं,
प्राप्य है
आदान नहीं
घटित है
हमारे हेतु
हमारे साथ
हमारे प्रति
किन्तु फिर भी
नहीं ढूंढ पाते
इसको...

जिसे पाया
नहीं जाता
उसे खोया भी
नहीं जाता
जो नहीं है मापनीय
होता है वो
परे मापदंडों से
परे मानकों से...

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