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ताक कर
निशाना
पके फलों पर
फैंकता है
पत्थर......
रखता है
कदम
टालते हुए
चुभ ना जाये
कोई खार...
करता है
बचाने के
खुद को
इंतजाम
हज़ार...
कहें क्या हम
इसको ?
निर्दयी !
हृदयहीन !
जड़-मति
खुदगर्ज
या कि
कायर...
ताक कर
निशाना
पके फलों पर
फैंकता है
पत्थर......
रखता है
कदम
टालते हुए
चुभ ना जाये
कोई खार...
करता है
बचाने के
खुद को
इंतजाम
हज़ार...
कहें क्या हम
इसको ?
निर्दयी !
हृदयहीन !
जड़-मति
खुदगर्ज
या कि
कायर...
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