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आतें हैं
समक्ष
कितने ही
रूप :
सुन्दर-असुंदर
यौवन-वृद्ध्तव
उदासी-उत्फुल्लता
और
मिलाता नहीं
जब
दर्पण
मन को
दृष्टी से,
होता है
यही तो
साक्षी भाव,
यही तो
होती है
स्थितिप्रज्ञता.........
आतें हैं
समक्ष
कितने ही
रूप :
सुन्दर-असुंदर
यौवन-वृद्ध्तव
उदासी-उत्फुल्लता
और
मिलाता नहीं
जब
दर्पण
मन को
दृष्टी से,
होता है
यही तो
साक्षी भाव,
यही तो
होती है
स्थितिप्रज्ञता.........
aapki kavita gagar mei saagar jaisee prateet hoti hai ....
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