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बनाया
कच्ची मिट्टी से
घड़ा एक
कुम्हार ने,
रखा पकाने
उसको
धधकते
अलाव में...
व्याकुल हो
कष्ट से
बोला घट :
"कुम्भकार!
मैंने पा तो लिया
आकार,
तपा रहा है
क्यों मुझे
असहनीय अगन में
जला रही जो
बदन मेरा."
"सर पर पनिहारी के
क्या सवार होगा
सीधा ही तू,
हेतु उठने
ऊँचा
होगा गुज़रना
तपिश से”
कहा था हंस के
कुम्हार ने.....
बनाया
कच्ची मिट्टी से
घड़ा एक
कुम्हार ने,
रखा पकाने
उसको
धधकते
अलाव में...
व्याकुल हो
कष्ट से
बोला घट :
"कुम्भकार!
मैंने पा तो लिया
आकार,
तपा रहा है
क्यों मुझे
असहनीय अगन में
जला रही जो
बदन मेरा."
"सर पर पनिहारी के
क्या सवार होगा
सीधा ही तू,
हेतु उठने
ऊँचा
होगा गुज़रना
तपिश से”
कहा था हंस के
कुम्हार ने.....
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