इन्सान इतना biased हो जाता है की हर संजोग में उसूल तलाश कर लेता है. जैसे कि एक सोसाइटी बिल्डिंग में रहने वाले एक लड़की और एक लड़के में इश्क हो जाना.....या भैय्या की साली से छोटे भाई का प्रेम हो जाना....और कहना कि 'मुझको बनाया गया है तेरे लिए'.
बहुत सी बातें महज़ संयोग होती है सिद्धांत नहीं.
अब मुल्ला नसरुद्दीन की ही बात लीजिये. मुल्ला गया था अफ्रीका शिकार करने. असलियत क्या थी अल्लाह जाने, अफ्रीका गया या नहीं ? अगर अफ्रीका गया तो शिकार को गया या नहीं ? शिकार को गया तो इतना exposure हुआ कि नहीं ?.......कुछ ऐसे प्रश्न हैं जिन्हें अनुत्तरित छोड़ देना ही उचित होगा.
हाँ तो, दोस्त लोग इकठ्ठा हुए उसके शिकार के कारनामें सुनने के लिए. मुल्ला था कि अपनी आदत के अनुसार, घी मिर्च लगा कर , खूब बढा चढ़ाकर.....चटखारे लेते हुए अपने किस्से सुनाये जा रहा था. यह बात और थी कि मुल्ला कि डींगे किसी को भी भरोसा नहीं दिला पा रही थी. मगर मुल्ला नॉन-स्टाप FM रेडियो की तरह बजाते जा रहे थे.
मुल्ला ने हांका कि एक ऐसा जानवर वहां उस ने पाया कि जब भी जानवर को अपनी मादा को बुलाने होता है तो जोरों से चिंघाड़ता है, मादा कहीं भी हो, जंगल के किसी भी कोने में बैठी-खडी-पड़ी हो, सीधी दौडी चली आती है.
जैसा कि होता है और खासकर मुल्ला की महफिल में जहाँ विनेश सर जैसे ज्ञानी पाए जाते हैं....सर यह कह बैठे, "अमां यार नसरुद्दीन ! कैसी आवाज़ करता है वह जानवर जरा हम को भी तो वैसा कर के बतलाओ."
मुल्ला बड़े जोर से चिंघाड़ कर उस जानवर कि आवाज़ में चिल्लाया. जब वह चिल्लाया उसी वक़्त बगल का दरवाज़ा खुला और उसके बीवी ने कहा, " कहो मुल्ला, क्या बात है ?"
कहते है ना संगत का असर आता है. गौरे के पास काला बैठता है तो उसका रूप नहीं तो गुण जरूर आ जाते हैं. मुल्ला भी तो विनेश सर जैसे बुद्धिशाली तर्क प्रवीण 'मासटर' का जिगरी यार......सोचा कि बात बन गयी.
मुल्ला लगा कहने, "देखो, उसूल समझ में आया.....सिद्धांत घुसा भेजे में. नर की चिंघाड़ और मादा का चले आना....देख लिया आवाज़ का जादू, हाथ कंगन तो आरसी क्या ? खाम-ओ-ख्वाह तुम लोग मुझे लपेटने वाला समझते हो."
बहुत सी बातें महज़ संयोग होती है सिद्धांत नहीं.
अब मुल्ला नसरुद्दीन की ही बात लीजिये. मुल्ला गया था अफ्रीका शिकार करने. असलियत क्या थी अल्लाह जाने, अफ्रीका गया या नहीं ? अगर अफ्रीका गया तो शिकार को गया या नहीं ? शिकार को गया तो इतना exposure हुआ कि नहीं ?.......कुछ ऐसे प्रश्न हैं जिन्हें अनुत्तरित छोड़ देना ही उचित होगा.
हाँ तो, दोस्त लोग इकठ्ठा हुए उसके शिकार के कारनामें सुनने के लिए. मुल्ला था कि अपनी आदत के अनुसार, घी मिर्च लगा कर , खूब बढा चढ़ाकर.....चटखारे लेते हुए अपने किस्से सुनाये जा रहा था. यह बात और थी कि मुल्ला कि डींगे किसी को भी भरोसा नहीं दिला पा रही थी. मगर मुल्ला नॉन-स्टाप FM रेडियो की तरह बजाते जा रहे थे.
मुल्ला ने हांका कि एक ऐसा जानवर वहां उस ने पाया कि जब भी जानवर को अपनी मादा को बुलाने होता है तो जोरों से चिंघाड़ता है, मादा कहीं भी हो, जंगल के किसी भी कोने में बैठी-खडी-पड़ी हो, सीधी दौडी चली आती है.
जैसा कि होता है और खासकर मुल्ला की महफिल में जहाँ विनेश सर जैसे ज्ञानी पाए जाते हैं....सर यह कह बैठे, "अमां यार नसरुद्दीन ! कैसी आवाज़ करता है वह जानवर जरा हम को भी तो वैसा कर के बतलाओ."
मुल्ला बड़े जोर से चिंघाड़ कर उस जानवर कि आवाज़ में चिल्लाया. जब वह चिल्लाया उसी वक़्त बगल का दरवाज़ा खुला और उसके बीवी ने कहा, " कहो मुल्ला, क्या बात है ?"
कहते है ना संगत का असर आता है. गौरे के पास काला बैठता है तो उसका रूप नहीं तो गुण जरूर आ जाते हैं. मुल्ला भी तो विनेश सर जैसे बुद्धिशाली तर्क प्रवीण 'मासटर' का जिगरी यार......सोचा कि बात बन गयी.
मुल्ला लगा कहने, "देखो, उसूल समझ में आया.....सिद्धांत घुसा भेजे में. नर की चिंघाड़ और मादा का चले आना....देख लिया आवाज़ का जादू, हाथ कंगन तो आरसी क्या ? खाम-ओ-ख्वाह तुम लोग मुझे लपेटने वाला समझते हो."
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