Sunday, August 16, 2009

रातें मचलती रही...............

दिन ढलते रहे
रातें मचलती रही
वो तो पत्थर रहा
मैं पिघलती रही........!!दिन ढलते रहे- रातें मचलती रही !!


बिजली गरज़ती रही
बारिश लरज़ती रही
मैं तड़फती रही
हरसू जलती रही..........!! दिन....!!

चाहत डरती रही
जुबाँ अटकती रही
मैं भटकती रही
यूँ ही चलती रही .........!! दिन......!!

बाहें ठंडी रही
साँसे मंदी रही
नज़रें अंधी रही
हर शै खलती रही .......!! दिन....... !!

पीड़ा बढती रही
शूलें गड़ती रही
खुद से लड़ती रही
नज़रें संभलती रही ......!! दिन ........!!

दस्तक होती रही
मोहलत सोती रही
फुर्सत रोती रही
कुंठा पलती रही .........!! दिन......... !!

झूठें छुटती रही
सोचें उठती रही
क़समें टूटती रही
रस्में बदलती रही .......!! दिन...........!!

रोशनी होती रही
फिजा महकती रही
शामें चहकती रही
कलियाँ खिलती रही .....!! दिन.....!!

No comments:

Post a Comment