(तर्ज़ : राजस्थानी लोक गीत 'पणिहारी' )
आवो म्हारे घर कान्हजी औ
म्हारा मदनगोपाल
म्हारा नंदगोपाल
उबी उबी जौवूं थारी बाट, बृजलाला...........
पलक पावडा बिछा रया सा
म्हारा गुवालां रा सिरदार
सुणज्यो गोप्यां रा दिलदार
पाट बिराजो सा , बृजलाला..............
अंसुवन धोवुं चरणकमल
श्यामा करो बिस्-राम
मोहन करो आराम
थक्या थक्या आया सा, बृजलाला............
शरबत मीठो गुलाब रो
कान्हा चांदी री गिलास
कईं ना लागी थाने प्यास
होठां सुं लगाओ सा , बृजलाला...................
छप्पन भोग पकवान है
कान्हा सोने केरो थाल
सोरम आवे अपरम्पार
आप आरोगो सा , बृजलाला..........
रेशम रा गिदरा बिछा दिया सा
पोढो जसोदा रा लाल
माता देवकी रा लाल
लोरी सुणावां सा, बृजलाला.........
सुपने में बिन्दरा बन सज्यो सा
म्हारा नटवर लाल
म्हारा मदनगोपाल
रास रचाओ सा , बृजलाला.........
जल जमना रो जोर को सा
बिंरो लीलो लीलो रंग
जियां थांरा सगळा अंग
बांसरी बजाओ सा, बृजलाला........
आणंद हिये में देवज्यो सा
म्हारा पालन हार
म्हारा किरपानिधान
शोभ्या थारी गावां सा, बृजलाला..........
आवो म्हारे घर कान्हजी औ
म्हारा मदनगोपाल
म्हारा नंदगोपाल
उबी उबी जौवूं थारी बाट, बृजलाला...........
पलक पावडा बिछा रया सा
म्हारा गुवालां रा सिरदार
सुणज्यो गोप्यां रा दिलदार
पाट बिराजो सा , बृजलाला..............
अंसुवन धोवुं चरणकमल
श्यामा करो बिस्-राम
मोहन करो आराम
थक्या थक्या आया सा, बृजलाला............
शरबत मीठो गुलाब रो
कान्हा चांदी री गिलास
कईं ना लागी थाने प्यास
होठां सुं लगाओ सा , बृजलाला...................
छप्पन भोग पकवान है
कान्हा सोने केरो थाल
सोरम आवे अपरम्पार
आप आरोगो सा , बृजलाला..........
रेशम रा गिदरा बिछा दिया सा
पोढो जसोदा रा लाल
माता देवकी रा लाल
लोरी सुणावां सा, बृजलाला.........
सुपने में बिन्दरा बन सज्यो सा
म्हारा नटवर लाल
म्हारा मदनगोपाल
रास रचाओ सा , बृजलाला.........
जल जमना रो जोर को सा
बिंरो लीलो लीलो रंग
जियां थांरा सगळा अंग
बांसरी बजाओ सा, बृजलाला........
आणंद हिये में देवज्यो सा
म्हारा पालन हार
म्हारा किरपानिधान
शोभ्या थारी गावां सा, बृजलाला..........
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