Sunday, August 23, 2009

सांझ ढले.......

(आज nano नहीं, फॉर ए चेंज एक नगमा पेश कर रही हूँ. मात्राओं में थोडी सी खामी है....सुझाव हों तो दीजियेगा)


सांझ ढले बिना दस्तक इस घर में कोई आया है
दिल की राहों से है गुज़रा, मेरी सांसों में समाया है. !!

उसके आने से मन तन में मेरे झंकार सी उठी है
बिन साजो आवाज़ के, कैसा संगीत उभर आया है. !! १ !!

हवाएं उसको छूकर छुए जा रही है मेरे तन को
पवन में असीर ठंडक ने, रों रों मेरा जलाया है. !! २!!

खोयी हुई थी मैं अब तक अनजाने से अंधेरों में
उसके कदमों की आहट से, उजाला भर आया है. !! ३ !!

खुशियाँ ही खुशियाँ, बिखरी हरसू मेरे जहाँ में
गुलाब मेरी बगिया का, खिजां में खिल आया है. !! ४ !!

तोड़ी है कसमे हमने रस्मों से हुआ किनारा है
तेरे आने से हर लम्हा, फ़रिश्ता बन आया है. !! ५ !!

चहकी है मेरी हर जुम्बिश एक नयी सी छुवन से
देख कर नया रूप मेरा, आज दर्पण भी शर्माया है. !! ६ !!

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