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रहने देता है
कौन सीधा
रस्सी बेचारी को ?
इख्तियार-ए-गैर में
हुआ करती है
वह तो,
देकर गाँठ
उसको
अपने मन की,
हो बेफिक्र
किनारे
हो जाता है
खुदपरस्त
इंसान....
रहने देता है
कौन सीधा
रस्सी बेचारी को ?
इख्तियार-ए-गैर में
हुआ करती है
वह तो,
देकर गाँठ
उसको
अपने मन की,
हो बेफिक्र
किनारे
हो जाता है
खुदपरस्त
इंसान....
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