पर्वत की शिखा पर
खडी हो कर
देखा था नन्ही चींटी ने :
हाथी मानो बकरी जितना हो
ऊँट बस खरगोश के बराबर
बहुत खुश हुई थी चींटी
बढ गया था
'कॉन्फिडेंस लेवल'
लगी थी सोचने :
"बहम था मेरा
बस...........
आँखन देखी से
निकल गया,
अब डर काहे का ?"
तेज कदमों से
उतर आई थी नीचे
फिर दिखने लगे थे
हाथी और ऊँट
बड़े बड़े... लम्बे से कद वाले.
घबरा गयी थी चींटी
लगी थी पूछने पर्वत से :
"लिल्लाह क्या हो गया यह
चन्द लम्हों में !
यह फर्क कैसे हो आया?"
बोला था पर्वत :
"अरे चींटी !
पहले आँखे थी तुम्हारी
मगर पाँव थे मेरे
और............अब
आँखे भी तेरी और
पाँव भी तेरे."
खडी हो कर
देखा था नन्ही चींटी ने :
हाथी मानो बकरी जितना हो
ऊँट बस खरगोश के बराबर
बहुत खुश हुई थी चींटी
बढ गया था
'कॉन्फिडेंस लेवल'
लगी थी सोचने :
"बहम था मेरा
बस...........
आँखन देखी से
निकल गया,
अब डर काहे का ?"
तेज कदमों से
उतर आई थी नीचे
फिर दिखने लगे थे
हाथी और ऊँट
बड़े बड़े... लम्बे से कद वाले.
घबरा गयी थी चींटी
लगी थी पूछने पर्वत से :
"लिल्लाह क्या हो गया यह
चन्द लम्हों में !
यह फर्क कैसे हो आया?"
बोला था पर्वत :
"अरे चींटी !
पहले आँखे थी तुम्हारी
मगर पाँव थे मेरे
और............अब
आँखे भी तेरी और
पाँव भी तेरे."
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