Sunday, July 26, 2009

साक्षी भाव....

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आतें हैं
समक्ष
कितने ही
रूप :
सुन्दर-असुंदर
यौवन-वृद्ध्तव
उदासी-उत्फुल्लता
और
मिलाता नहीं
जब
दर्पण
मन को
दृष्टी से,
होता है
यही तो
साक्षी भाव,
यही तो
होती है
स्थितिप्रज्ञता.........

1 comment:

  1. aapki kavita gagar mei saagar jaisee prateet hoti hai ....

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