Wednesday, October 13, 2010

पाँव दूजों के....

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पर्वत के शिखर पर
चढ़ गयी थी
छोटी सी चींटी,
झाँका था उसने नीचे :
लगा था हाथी कुत्ते जितना
ऊँट मानो हो खरगोश
और इन्सान मानो खिलौना,
बहुत खुश थी चींटी
लगी थी सोचने
ना डरूं में अब तो,
डर से मरुँ ना अब तो,
बहम था बस मेरा
कोई भी तो नहीं बड़े,
देखा आज मैंने
असल रूप उनका,
बढाती कदम तेज़ी से,
उतारी थी नीचे चींटी,
लगने लगा हाथी पहाड़ सा
ऊँट हाथी सा
इन्सान शैतान सा,
घबरा गयी थी बेचारी चींटी
पूछ बैठी थी पर्वत से :
पल भर में यह फर्क कैसा ?
मुस्कुराया था पर्वत,
लगा था कहने :
पहले नज़रें थी तुम्हारी
मगर
पांव थे मेरे,
और अब ?
नज़रें भी तेरी
पांव भी तेरे....:)

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