Friday, October 22, 2010

फजूल के शिकवे : by अंकित भाई

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महाजे-शौक से
आती है
रुदादे-जंग क्यूँ,
खल्के-खुदा
तेरी पनाहों में,
मैं आया तो था.

उठाया था
पहला पत्थर
मेरे मोहसिन ने,
वरना तू-ने
मुझ को
बचाया तो था.

प्यासे की
जुस्तजू में था
ख्वाब इक
बहर का,
सपना सिदफ का
गौहर को
आया तो था.

रास्ते के
पत्थरों ने
खुद आकर दी थी
चोटें
पांवों को,
वरना मैं भी
संभल के
चल पाया तो था.

वक़्त ने
दे दिया था
मौका
डसने का,
आस्तीन का
सांप
कबसे यंही
पल पाया तो था.

जब देखा
सहन में गिरे
पत्थरों को,
शजर घर के
लदे थे
अनारों से
खयाल ऐसा कुछ
आया तो था.

भर गया था
आँगन उसका
फलों के ढेरों से,
मैं ना चख सका तो क्या
वो फरजन
मेरा हमसाया तो था.

रोशनी के
जवां लम्स ने
छोड़े थे अँधेरे..
दिलों में,
जुगनुओं के
जमघट ने
गीत रफाकात का
गाया तो था.

क्यूँ करते हो
शिकवे फजूल के
खुद से,
नज़र बुलंदियों पे
रखने
की
फ़ित्रत ने
साजो-दस्तर
गिराया तो था.



महाजे-शौक=Battlefield of desires, रुदादे-जंग=News of war, मोहसिन=Well-wisher,
लम्स=touch, साजो-दस्तर=turban(पगड़ी), शजर=Tree, फरजन=wise person, हमसाया=neigbour, बहर =ocean,समंदर जुस्तजू=in search, सिदफ=mother of pearl(सीपी) ,गौहर=pearl, रफाकत=peace and happiness(सुख-शांति) , खल्के-खुदा=O lord! Master of Universe.




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