Saturday, April 3, 2010

वहदत........

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नन्ही बूँदें
बारिश की
गिरी
आसमां से
कोहसार पर,
फिसल गई
डर गई
सोचा
मर गई,
लुढ़कते
लुढ़कते
हुई
शरीके-ग़म-खुदाई
खुद सी
सहमी हुई
चन्द और बूंदों से,
वहदत में
बन गई
एक नदी,
लगी दौड़ने
जानिबे-मंजिल
मिलने को
बहरे-बेकराँ से.....

(कोहसार=पर्वत श्रृंखला, शरीके-ग़म -खुदाई=संसार के दुखों की साझीदार, वहदत=एकत्व,जानिबे-मंजिल=मंजिल की तरफ, बहरे-बेकराँ=फैला हुआ समंदर)

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