Thursday, April 15, 2010

दो पंछी.....

(यह एक सांझा सृजन है....हम दो दोस्त बैठीं हैं दो पंछियों की तरह....और कह रही है दो पंछियों की बात)
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मेरी खिड़की के बाहर
एक बड़ा सा पेड़,
पेड़ की दो डालियाँ:
एक हो कर
निकली तने से
फिर जुदा हो कर
दो हो गयी,
हर डाल पर बैठी
एक चिड़ियाँ,
दोनों चिड़ियाँ
बतियाती है
दुलराती है
मुस्काती है
मिल कर
चहचहाती है
चोंच में
चोंच डाल
दोनों डालियों का
वृतुल पूरा करती है...

फिर अचानक
उड़ जाती है एक
दूसरी भी
भरती है उड़ान
तलाशने दाने
ताकि जीया जा सके
इन्ही टहनियों पर
हर रोज़ मिला जा सके,
हो जाये
तिनका तिनका जोड़ कर
तैयार कोई
घोंसला
इन्ही डालियों पर,
और
निकले एक दिन फिर
कुछ और चिड़ियाँ
करने आबाद किसी
और टहनी को.......

कल की चिंता नहीं
आज का भय नहीं
जो चला गया
उसका मलाल नहीं
ना पुलिस
ना फौज
ना डाक्टर
ना स्कूल
ना कचहरी
ना वकील
ना मंदिर
ना मस्जिद
ना बैंक
ना खज़ाना
है उनके पास
जीने को यह पल
यहीं और अभी......

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