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समाया
धरती में,
सहे दवाब,
ऊष्मा,
सब कुछ....
हुआ
अंकुरित
मिटाया
वुजूद
अपना
देने को
अस्तित्व
'और' को.......
भूल गये
हम
बीज को,
याद रहा
बस पेड़,
दिखता जो है.......
समाया
धरती में,
सहे दवाब,
ऊष्मा,
सब कुछ....
हुआ
अंकुरित
मिटाया
वुजूद
अपना
देने को
अस्तित्व
'और' को.......
भूल गये
हम
बीज को,
याद रहा
बस पेड़,
दिखता जो है.......
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