Friday, April 30, 2010

रिश्तों के रखाव में : गौतम की करुणा-मैत्री-क्षमा

रिश्तों के रखाव में
सहजता का आभाव क्यों ?

गौतम ने ज्ञान
था पाया
सिद्धार्थ बुद्ध था कहलाया
“बनो खुद कि शम्मा
खुद ही………..
करने को रोशन खुद को”
दुनिया को सबक सुहाना
तथागत ने पढाया
पैगाम मैत्री करुणा का
सारी दुनिया में फैलाया
तृष्णा-मुक्ति का मार्ग
गौतम ने था दिखलाया
शरण बुद्ध, धर्म और संघ के
आलम था सारा आया...................

एक था विद्वान्
अति-तार्किक
किन्तु दम्भी
दिल में बसा रखी थी उसने
भाषा की एक बारह्खाम्भी
बुद्ध के वचनों के विपरीत
उसका बात रखना
मुसुकुरा कर भगवन का
उसकी जिज्ञासा को
शांत करना
होकर बहुत प्रभावित
वह शिष्य बन गया था
अनुयायी हो बुद्ध का
संघ-भिक्षु बन गया था
किन्तु आहत अहम् उसका
ना शांत हो सका था
निज हीन-भावना से वो
ना आज़ाद हो सका था
प्रतिशोध की अगन में
प्रतिपल तो वह जला था
करुणा-मैत्री का भाव बस
ऊपर से ही फला था…..

उसी भिक्षु अभिमानी ने
षड्यंत्र यूँ किया था
मणि-पदम् के भोजन में
विष मिला दिया था
जाना था गौतम ने बेला
देह-त्याग की थी आई
बुला आनंद प्रिय शिष्य को
यह बात थी बताई
करदो प्रसारित
हे आनंद ! “बुद्ध त्यागेंगे बदन को
होंगे दो किस्मतवाले
कह दो जाकर इसे
जन-जन को
एक होगा वह दयालु जिसने
पहला कौर था जिमाया
दूजा वह कृपालु अंतिम ग्रास
जिसने खिलाया”
यह बात समस्त संघ जाने
मेरे जीवन-समय में
अन्यथा प्रताड़ित ना करदे
उसे विष-दान के संशय में ….
करदो उसे प्रतिष्ठित
हे आनंद ! मेरे होते
जीवन मरण तो आनंद !
नीयत घड़ी पे होते
क्षमा से भी आगे
गौतम ने कर दिखाया
इसीलिए तो बुद्ध
खुदा अमनका कहलाया..

हम लगाते हैं बुद्ध कि मूरत
संसद, घर औ चौबारों में
नाम उसका हैं हम लेते
विश्व-शांति के नारों में
बुद्ध की करुणा-मैत्री-क्षमा से रहित
हर समाज का स्वभाव क्यों……..
रिश्तों के रखाव में
सहजता का आभाव क्यों ?

No comments:

Post a Comment