Monday, April 5, 2010

कृपण दर्पण........

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कैसी
भिखारन है री
तू,
कुछ नहीं देगा
तुझको,
यह
कृपण
दर्पण,
चाहे रीझ
चाहे खीज,
बना चाहे
नयनों को
आषाढ़
या
सावन....

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