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सूरज की
धधकती
अंगीठी से
पड़ गया था
उछलकर
एक अधजला सा
कोयला
और
हो गया था
अँधेरा ......
वक़्त के
चिमटे से
उठाया था उसको
आसमां ने
और
डाला था
फिर से
अंगीठी में ;
हो गया था
सवेरा......
सूरज की
धधकती
अंगीठी से
पड़ गया था
उछलकर
एक अधजला सा
कोयला
और
हो गया था
अँधेरा ......
वक़्त के
चिमटे से
उठाया था उसको
आसमां ने
और
डाला था
फिर से
अंगीठी में ;
हो गया था
सवेरा......
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