Thursday, March 4, 2010

दिनरात (१३) : वक़्त का चिमटा

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सूरज की
धधकती
अंगीठी से
पड़ गया था
उछलकर
एक अधजला सा
कोयला
और
हो गया था
अँधेरा ......

वक़्त के
चिमटे से
उठाया था उसको
आसमां ने
और
डाला था
फिर से
अंगीठी में ;
हो गया था
सवेरा......

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