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कैसे
दीया
जलाऊं
मैं ?
छाया
तिमिर है
बाहर
मेरे
तिमिर
बसा है
भीतर
मेरे
दोनों है
समतुल्य
मुझे तो,
कर के
क्यूँ यूँ
एक
उजारा
एक
अँधेरा,
खुद को
क्यों
हराऊं
मैं,
कैसे
दीया
जलाऊं
मैं ?
रुकते
नहीं
आंसूं के
धारे,
अविरल
गुंजरित
गीत है
सारे,
कैसे
बज़्म
सजाऊं
मैं,
कैसे
दीया
जलाऊं
मैं ?
दीप
मेरा
जलेगा
जिस
पल
शलभ
मरेंगे
व्याकुल
चंचल,
अंतिम
खेल
अपने
नयनन को,
हतभाग!
कैसे
दिखाऊं
मैं,
कैसे
दीया
जलाऊं
मैं ?
जो दिखे
वह
सच
ना है
जो ना
दिखे
वो
मेरा
ना है,
उहापोह के
गोरखधंधे में,
खुद को
क्यों
भरमाऊं
मैं,
कैसे
दीया
जलाऊं
मैं ?
Friday, March 19, 2010
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