Tuesday, March 23, 2010

गूंगे बहरे अल्फाज़....

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बहुत से
अल्फाज़
होते हैं
गूंगे,
नहीं बता
पाते
मायने
खुद के,
आदतन
चले आते हैं
होंटों के
दर से निकल
कानों के
गलियारों तक
या
कलम से
पिघल कर
नज़रों के
दरीचों तक,
बेमानी
हरक़तें कर
चले जाते हैं
नामुराद
ना जाने
किन राहों पर,
करते हैं
पीछा
इन गूंगो का
चन्द
बहरे अल्फाज़
जो हो जाते हैं
चौकन्ने
बस होठों की
जुम्बिश
देख कर....

(दरीचे= खिड़कियाँ, नामुराद=अभागा, बेमानी=अर्थहीन, जुम्बिश=हरक़त, कंप)

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