(होली के अवसर पर लिखी थी, पोस्ट नहीं हो पाई....आज शेयर कर रही हूँ.)
# # #
रात की सिल पर
चाँद के लोढे से
अँधेरे की भंग
(और)
बादाम तारों की
हुई थी
पिसाई,
मदमस्त
वक़्त रसिये ने
मौज से
घोटी थी
चांदनी की
ठंडाई...
# # #
रात की सिल पर
चाँद के लोढे से
अँधेरे की भंग
(और)
बादाम तारों की
हुई थी
पिसाई,
मदमस्त
वक़्त रसिये ने
मौज से
घोटी थी
चांदनी की
ठंडाई...
No comments:
Post a Comment