Monday, March 8, 2010

दिनरात (१६) : बहार फलक में

# # #
बीता है
पतझड़
दिन का,
आ गया है
मौसम-ए-बहार
गुलशन-ए-फलक में.....

फूटी है
कोंपलें
रौं रौं में
अँधेरे के
शजर पर.......

फ़ैल गयी है
हरसू
महक
उजास की.....

बजने
लगे हैं
नग्मात
वस्ल के
दिल की
बांसुरी पर .......

सुन कर
दिलकश तान
निकल आई है
कोई हूर
बन कर
चाँद
उफक की
ओट से....

(मौसम-ए-बहार=बसंत ऋतु, गुलशन=उपवन/बगीचा, फलक=आकाश, शज़र=वृक्ष, हरसू = सब ओर, नग्मात=गीत, वस्ल=मिलन, हूर=अप्सरा, उफक=क्षितिज)

No comments:

Post a Comment