# # #
कैदी-संग ही
कैद भोगता
कैद का वो
रखवाला.....
फर्क इतना बस
एक है भीतर
एक खड़ा है
बाहिर,
बंधे पांव
पोशीदा उसके
बात है यह
जग-जाहिर...........
चाभी पकडे
कमर उसी की
जो लगाये ताला,
कैदी-संग ही
कैद भोगता
कैद का वो
रखवाला.....
फन्दा मुश्किल
डाला बन्दे ने
पकड़ सिरे को
पहले,
घन कूटे
धनाधन लोहा
चोटें एरन की
झेले.
मकड़ी
फंसाने औरों को
यारों !
गिर्द खुद के
बुने है जाला,
कैदी-संग ही
कैद भोगता
कैद का वो
रखवाला.....
तशद्दुद है
तलवार एक
तेज़ बड़ी दुधारी,
काटे सो
खुद ही
कट जाये
मार है
इसकी भारी.
उलझा कर
दूजों को
भैय्या !
कैसे बचे
कोई मतवाला,
कैदी-संग ही
कैद भोगता
कैद का वो
रखवाला.....
( पोशीदा= अदृश्य/invisible, तशद्दुद=हिंसा/ violence)
Tuesday, March 9, 2010
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment