Wednesday, March 17, 2010

सच और स्वप्न....

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(१)
आँखों के आगे :
चारमीनार
हुसैन सागर झील
सालारजंग म्यूजियम
हैदराबादी बिरयानी
मिर्ची का सालन
ज्वार की फसल
उर्दू सी मीठी जुबान
निजाम की शान
शरीफा और अंगूर
हूर के संग लंगूर
तेलंगाना आन्दोलन
अजीब से स्पंदन
हाई टेक शहर
बदलता रहता
हर पहर...
(२)
दृष्टि में उगे हैं :
विजय स्तम्भ
आमेर का किला
कैर और खेजड़ा
बबूल और रोहिड़ा
मोठ बाजरे के खेत
सुनहरी रेत
तलवार की धार
जौहर की पुकार
पीन्पली और कुरजां
केसरिया बालम की गरजां
मोरिया और धोरिया
इसर और गोरयां
काकड़िया मतीरा
बाईसा का बीरा
मूंछ की मरोड़
निरजन खोड़......
(३)
कौन सा सच ?
कौन सा स्वप्न ?

[कविता का पहला हिस्सा (१) हैदराबाद की बात कर रहा है, जहाँ मेरे पूर्वज राजपूताना से किसी ज़माने में आये और हम बरसों से बसे हैं....दूसरा (२) हिस्सा राजपूताने को इंगित कर रहा है जहाँ हमारी जड़ें है...कैर वहां कि झाड़ी है, खेजडा-बबूल-रोहिड़ा वहां के पेड़, पीन्पली-कुरजां-केसरिया वहां के लोकगीत, धोरिया बालू रेत के सुनहले टीबे,मोरिया मोर, इसर गोरयां =शिव पार्वती के रूप-गणगौर त्यौहार कल मानेगा, काकड़िया मतीरा-थार के फल, खोड़-बीहड़..ये बस मन के उदगार हैं जो पीढ़ियों से हमारे यहाँ दोहराए जाते रहे हैं...आज आँखे गीली किये आपसे शेयर कर रही हूँ.]

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