Monday, March 22, 2010

सृजन और विसर्जन....

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गिरी है
बूँद
बारिश की,
चलने लगा
पांवों पर,
धरा की
गोद में
सोया हुआ
शिशु
बीज,
घटित हुए
क्षण
संभावनाएं
साकार
होने के.........

नहीं
थमेगी
प्रक्रिया
विकास की,
जब तक
बन
ना
जायेगा
फिर से
वह
बीज,
कर के
अपने
समस्त
स्वत्व का
विसर्जन,
करने हेतु
पुनः पुनः
सृजन....

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