Monday, March 15, 2010

दिनरात (२२) : दूध,दही,माखन और घी

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तारे :
रात की
भैंस के
थनों से
टपकती
बूंदे
दूध की......

चाँद :
नभ की
जाँवणी में
जमाया हुआ
चक्के सा
दही.....

सूरज :
बिलौने से
निकला
माखन....

धूप :
पिघला हुआ
घी
चुपड़ती है
जिस से
धरती की
रूखी
रोटी....

(जिस पात्र में दही जमाया जाता है उसे राजस्थान में 'जाँवणी' कहते हैं,यह गोल फैलावदार नांद के आकार क़ी होती है. अच्छे से सेटल हुए दही को राजस्थान में 'चक्के' सा दही कहते हैं, इन राजस्थानी शब्दों का प्रयोग मैंने इरादे से किया है...शायद लगभग ऐसे ही शब्द बृज अथवा पश्चिमी उत्तर-प्रदेश, मालवा आदि में प्रचलित हों....या इन्हें कुछ और कहा जाता हो, कृपया जानकारी शेयर करें..धन्यवाद.)

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