Tuesday, September 8, 2009

मुल्ला की हाज़िर-जवाबी उर्फ़ गणित मुल्ला का

मुल्ला नसरुद्दीन भी अपने दोस्त प्रोफ़ेसर विनेश राजपूत की संगत में रह कर हाजिरजवाब हो गये. हर भूल का कोई ना कोई जस्टिफिकेशन मुल्ला निकाल ही लेते हैं.

अभी उस दिन की बात है. मुल्ला नसरुद्दीन का बाज़ार में किसी से झगड़ा हो गया. वह शख्स बड़ा नाराज़ था. उसने गुस्से में आ कर मुल्ला से कहा, "ऐसा झापड़ रसीद करूँगा की बत्तीसों दांत जमीन पर गिर जायेंगे. पूरी की पूरी बत्तीसी धूल चाटेगी."

मुल्ला को भी ताव आ गया. बहुत ही जोश-ओ-खरोश से बोला नसरुद्दीन, " अबे तू ने समझा क्या है, हम ने अगर कस कर एक झापडा मारा तो चौसठों बाहिर आ गिरेंगे." ( दो गुना दावा ठोंकना होता है ना.)

एक तीसरा आदमी,जरा ज्ञानी किस्म का, वहीँ खडा था. उसका ज्ञान वाला कीड़ा कुलकुलाने लगा. बहुत कोशिश कर के भी चुप नहीं रह पाया. ऐसे ज्ञानियों को जो मन में आया अगर नहीं बका जाये तो गैस हो जाती है, घुटन सी महसूस होने लगती है. उनको कुछ ऐसा लगता है की गेम हाथ से गया. हाँ तो जनाब 'तीसरे आदमी' मुल्ला के मुखातिब होकर बोले, " मियां बड़े एहमक हो, इंसान के कोई चौसठ दांत होतें हैं क्या ? तुम ने बायोलोजी में आदमी के शरीर की बनावट (anatomy) वाला सबक ठीक से नहीं सीखा, इतना तो खयाल करो इन्सान के बत्तीस दांत होते हैं चौसठ नहीं."

मुल्ला, विनेश सर का दोस्त.....पट्टे का खिलाडी. दाग दिया उसने, " अमां अपने दामन में झांक ! गणित में फ़ैल हुआ लगता है, अरे हमें तो पहिले ही से मालूम था कि तुम बीच में कूद पड़ोगे, इसलिए बत्तीस के दुने चौसठ, एक ही झापडा में दोनों के गिरा दूंगा."

(मुदिता दी : 'तीसरे आदमी' को गणित सिखानी है, आपको रेफर करूँ क्या ? हाँ अगर शागिर्द बहुत हो गये हों, काम बढ़ाना हो तो मुल्ला को रख लीजिये एकाध बैच दे दीजियेगा.....कितने ज़हीन हैं मुल्ला आप जानती ही है. )

आदमी अपनी मान्यताओं के लिए कारण खोजता जाता है, कारणों के थप्पे लगाये जाता है ताकि मान्यताएं टूट ना जाये, फूट ना जाये. कुछ ना कुछ जोड़-तोड़ बिठाए जाता है. आदमी से भूल हो जाये तो भी उसे जानते हुए भी उसे स्वीकार नहीं करता, अपनी भूल के लिए भी कारण खोज लेता है, तर्क खोज लेता है...... भूल को स्वीकार करना साहस से ज्यादा एक प्रैक्टिकल बात है....जिस ने भूल को स्वीकार कर लिया उसके भूल रहित होने के चांस ज्यादा है. हाँ मुल्ला कि तरह के ज़हीन लोग अपनी मान्यताओं को कुछ इस तरह से मेन्टेन करते रहते हैं और गलतियों को जस्टिफाई भी कर लेते हैं, सिर्फ शोर्ट टर्म बेनेफिट के लिए. आखिर मैं उन्हें ही पछताना होता है : खुदा मिला ना विसाल-ए-सनम.

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