Thursday, September 10, 2009

स्वांग :आशु कविता........

इंसान जीने को
समझले गर स्वांग,
स्वांग में ले आए
हकीक़त जीने की
आने लगेगी खुशबू
हर पल
जीने के करीने की.........

खेल है ज़िन्दगी
कोई खेला इसे
हंस के होकर
ग़मों से परे,
सुनाये किसी ने
नाले चन्द
दर्द भरे,
लगायी मरहम किसी ने
किए हैं किसी ने घाव हरे.......

सलीका जीने का
सीखना है गर
दिल को जोड़ले तू रब से,
फूटेगी ख़ुद-बा-ख़ुद
तवस्सुम तेरे लब से,
ऐ अंधेरों में भटकते राही !
खड़ी है रोशनी
नवाजने को
तुझको कब से.......

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