Thursday, September 24, 2009

विस्मय........

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छोड़ कर
बना बनाया
आसान मार्ग
चली थी मैं
बीहड़ की टेढी मेढी
वीथिकाओं में (या)
कदम रखते
उजाडों में
नयी राह
स्वयं की बनाते हुए,
नहीं डरा सके थे मुझे
घनघोर जंगल
ऊँचे पर्वत
उफनते सागर,
होता है विस्मय...
मुझ खोयी हुई को
कैसे खोज सकी है
मंजिल ????????????

..

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