Sunday, September 20, 2009

राधिका ....II

राधिका सोचों में खोयी खोयी सी थी. बीते दिनों के इन दृश्यों को देखते विचरते उसका मन खिन्न सा हो गया था. सामाजिक रिश्तों की भोगी हुई सच्चाईयां उसको शूलों कि तरह चुभने लगी थी. ना जाने क्यों रोष और उदासी के मिश्रित भाव उसे घेरे जा रहे थे. सेल-फ़ोन बज उठा....स्क्रीन पर आया था "कुमार साहब कालिंग ", राधिका को लगा मन-मस्तिष्क का बौझा अचानक हल्का हो गया, स्क्रीन पर उभरे नाम मात्र ने उसके मायूस मिजाज़ को गुलज़ार बना दिया था .
"नवरात्रा शुभ हो, दुर्गे ! पूजा हो गयी." कुमार साहब बोल रहे थे.
"आपको भी नवरात्रा की शुभ कामनाएं ! आपने भी पूजा करली." राधिका चहक रही थी.
उधर से कुमार साहब का आह्लाद भरा गंभीर स्वर कह रहा था, " देवी, इसीलिए तो फ़ोन किया, सोचा दूर बैठी देवी को प्रणाम कर लिया जाये."
राधिका ने जवाब दिया, "आप नहीं सुधरेंगे कुमार साहब, क्यों शर्मिन्दा कर रहे हैं ? दूर होने से क्या हुआ आप तो सदैव इस मानवी के संग एहसास बन कर रहते हैं. देवी माँ आपको अधिकाधिक शक्ति दे, जिस-से आप के सोचों का लाभ ज्यादा से ज्यादा लोगों को मिल सके. हाँ खाने-पीने का ध्यान रखियेगा, नवरात्रा में समय पर फलाहार ले लीजियेगा. दवा भी समय पर ले लीजियेगा."
"अपना खयाल रखना, राधिका....बाय." कुमार साहब ने बात समाप्त कर दी थी.

फ़ोन को सेंट्रल-टेबल पर रखते दूसरे हाथ से अपनी साडी के पल्लू से राधिका नाम पलकों को पौंछ रही थी. अधरों पर मुस्कान थिरक रही थी, ऐसा लग रहा था मानो पूरे तन-मन में नवीन प्राणों का संचरण हो गया हो.
राधिका ने घड़ी देखी, पल्लू को ठीक किया और फिर से उसका सोचों का सफ़र आरम्भ हो गया था. मनीष कि ज्यादतियां दिन प्रतिदिन बढती जा रही थी. एक दिन मनीष कह बैठा, "शादी को ६ साल हो गये. मां-बाबूजी पोते का मुंह देखने तरस रहे हैं. तुम हो कि कुछ नहीं दे पा रही हो." कल शाम का मैंने 'Hope Inferitlity Cure Center' के डा. नसीर अहमद से appointment लिया है. उनसे राय लेंगे कि क्या किया जाय. नियत समय पर मनीष राधिका के साथ डा. अहमद के सामने था. जनरल चेक अप और सूचनाओं को नोट करने के बाद डा. अहमद ने दोनों के लिए कुछ टेस्ट्स लिखे, जो वहीँ हो सकते थे. अगला appointment सात दिन बाद का दिया गया. उस दिन मनीष अकेला क्लीनिक में गया, डॉक्टर को बोला कि राधिका की तवियत नासाज़ है इसलिए वह नहीं आ सकी. डाक्टर अहमद ने कहा कि उन्होंने सारी रिपोर्ट्स को देखा है और विचार किया है. मनीष और राधिका दोनों को ही चिकित्सा कि आवश्यकता है. राधिका की दो समस्याएं रिपोर्ट्स से पता चली है : पहली उसके ओवारिज में सिस्ट है, और दूसरी किसी नामालूम भीतरी आघात से गर्भाशय की नसें कमज़ोर हो गयी है. दोनों स्थितियों के लिए माकूल इलाज उपलब्ध है. मनीष के स्पर्म काउंट कम है, उसका भी इलाज है. मनीष ने कहा कि अगर वे यथोचित चिकित्सा कराएँ तो क्या संतान होना निश्चित है. उस पर डा. अहमद बोले, "बच्चा होना या ना होना इतेफाक है, साइंस अपने तौर पर कोशिश कर सकती है और जो इलाज चुना जा रहा है उसके नतीजे भी positive हासिल हुए हैं दुनिया में बहुत जगह. हाँ गारंटी किसी बात कि नहीं ली जा सकती." डॉक्टर अहमद ने सभी बातों को पूरे तौर पर तफसील से बताया भी, CD मदद से. मनीष को तो बस एक ही सवाल में रूचि थी, राधिका की बच्चादानी को भीतरी आघात कैसे लगे.
घर आकर बाकी सब बातों को गौण कर, मनीष ने बस इसी मुद्दे को गरमाए रखा था. आरोप-प्रत्यारोप का बेहूदा सिलसिला शुरू हो गया था, "ये कैसे हुआ, भीतरी नसें कैसे कमज़ोर हो गयी ?"......"राधिका अपने कर्मों से बाँझ बन कर रह गयी है." .....राधिका ने कभी भी मनीष के अतीत और वर्तमान पर प्रश्न नहीं उठाये थे, मगर मनीष के लिए मानो राधिका का अतीत सुखी दांपत्य जीवन के लिए बाधक था. बच्चे पैदा होने कि सम्भावना भी इतेफाकन थी, जैसा डॉक्टर ने बताया था, उसके लिए भी राधिका ही जिम्मेदार थी. ऊपर से राधिका गंवार, उसे पहनना ओढ़ना नहीं आता, बात का सलीका नहीं, बिज़नस/सोशल पार्टीज में presentable तक नहीं. कुल मिलाकर मनीष अपने भाग्य को कोसता था कि उस जैसे टेलेंटेड इन्सान को राधिका जैसी मिडल क्लास बीवी मिली. इन सब के बावजूद भी हिंसक और आक्रामक तरीके से मनीष राधिका को झूठा प्रेम जता कर भोगता रहा. बेचारी राधिका क्या समझे कि इसमें भी मनीष-पिंकी की कुछ साजिश थी. इस दौरान मनीष ने ना जाने कितने कागज़ किसी ना किसी बहाने राधिका से दस्तखत करा लिए. पतिव्रता नारी राधिका...... उसको क्या मालूम कि ये कागज़ उसके समस्त संचित धन और शादी को को हड़पने के लिए एक चाल के तहत बनाकर उसके दस्तखत कराये गये हैं. यही नहीं, कुछ दिन बाद उसे तलाक का नोटिस रजिस्टर्ड डाक से मिला, उसके तो पाँव तले ज़मीन खिसक गयी. शाम को मनीष जब घर आया, राधिका बहुत रोयी धोयी. मनीष ने उसे अपने साथ लिपटा मुआफी मांगी और कहा कि यह नोटिस उसने आवेश में वकील से दिला दिया था......मनीष कार्यवाही को रुकवा देगा. .........और ना जाने कैसे मनीष ने मेनेज किया, एक दिन मनीष ने तलाक़ कि डिक्री राधिका के हाथ में थमा, उसे अविलम्ब उसके घर से दफा हो जाने को कहा.

राधिका को दुनिया उलटती नज़र आने लगी. उसने मनीष से बहुत अनुनय विनय किया किन्तु पत्थर दिल मनीष पर कोई असर नहीं हुआ.
उसकी दुनिया तो उस चारदीवारी में सीमित हो गयी थी, मदद के लिए पुकारे तो किसे पुकारे. पिंकी ने जल्दी जल्दी उसका समान दो सूटकेसों में पेक किया, उसे हज़ार हज़ार के पांच नोट दिए और कहा कि नैहर चले जाये, वह कोशिश करेगी मनीष को समझाने की. वह टैक्सी तक राधिका को छोड़ने भी आई. आँखों में आंसू लिए राधिका पीहर कि चौखट तक पहुंची. शायद इस बीच, फ़ोन पर उसके आगमन की खबर मनीष/पिंकी ने वहां दे दी थी. मां ने कहा, "तुझी में दोष है, मनीष जैसे पढ़े लिखे होनहार लड़के को देख कर हम ने बहुत धूम-धाम से तुम्हारी शादी की, तुम्हारी पिछली गलतियों ( पियूष के साथ प्रेम) को भी छुपाया....तू शुरू से ही अच्छी लड़की नहीं थी, हम क्या कर सकते हैं, हमारे समझाने से बेचारे ने तुम्हे ६ सालों तक निभाया. दो चार दिन की बात और है, तुम्हे उसके बाद अपनी व्यवस्था खुद ही करनी होगी. हमें तो यह चिंता सता रही है सुधा को कौन ले जायेगा, बिरादरी में तुमने हमें किसी को मुंह दिखाने के लायक नहीं रखा."
बाप उसको देख कर अन्दर जा कर बैठ गया था.....सुधा और अनुज भी इधर उधर हो गये थे. मामा कह रहा था, "अपने कर्मों का फल खुद को ही भुगतना होता है." राधिका को बिना 'ट्रायल' के 'गिल्टी' घोषित कर दिया गया था. राधिका ने आंसू पौंछे और मुड़ गयी. कुछ देर बाद रेलवे स्टेशन पर थी राधिका.
प्लेटफार्म पर बहुत गहमागहमी थी, एक ट्रेन जो मुंबई जाने के लिए तैयार खडी थी, लगभग छूटने को थी. कुली ने कहा-"मेमसाब ! ऐ सी डिब्बे में " बिना सुने समझे ही राधिका ने हामी भर दी. कुली ने कहा कौन सा कूपे---क्या यही ? फिर राधिका कि बेहोशी कि हामी. कुली ने समान कूपे 'बी' में सेट किया. अपना मेहनताना लिया....कि ट्रेन स्टार्ट हो गयी. कोई पंद्रह मिनट के बाद गाड़ी ने स्पीड पकड़ ली थी. राधिका
कूपे के बाहर आई, देखा ट्रेन दौडी जा रही थी और डिब्बे के दरवाज़े पर कोई नहीं था, उसने दरवाज़ा खोला और बाहर को झुक गयी, इतने में किसी बलशाली हाथों ने उसे अन्दर कि ओर धकेल लिया. उस व्यक्ति ने दरवाज़ा बंद किया और कहा, "आप कूपे 'बी' में ही है तो....मैं फ्रेश होने चला आया था, अनायास मेरी नज़र आप पर पड़ गयी.....ना जाने क्या हादसा हो जता .....आप अपनी जान गँवा देती या अपाहिज हो जाती. चलिए अन्दर बैठ कर बात करते हैं." राधिका सूखे पत्ते के माफिक कंप रही थी, गला सूख रहा था....आँखों के आगे अँधेरा सा छ रहा था. कूपे में सहारा देकर उस व्यक्ति ने राधिका को लिवा लिया और बैठा दिया. मिनेरल वाटर कि बोतल से गिलास में पानी ढाला और राधिका कि जानिब बढा दिया. "पानी पी लीजिये." कह रहा था व्यक्ति. राधिका ने कुछ घूँट भरे और गिलास को हाथों में थाम बैठ गयी, सूनी सूनी आँखों से देखने लगी. उन्होंने गिलास को राधिका के हाथ से लिया और कहा, "आपको आराम की सख्त ज़रुरत है, आप लेट जाईये इसी लोअर बर्थ पर." चद्दर बिछी हुई थी, उस व्यक्ति कि आवाज़ में ना जाने कैसा जादू था, राधिका चुप-चाप लेट गयी. व्यक्ति ने चद्दर उढा दी और कहा कि आप बिलकुल महफूज़ हैं, किसी भी तरह कि फ़िक्र ना करें.....मैं सब संभाल लूँगा. टिकेट एक्जामिनर आया, उस ने उस व्यक्ति को बहुत आदर से नमस्कार किया.....वह व्यक्ति बोला यह भी उनके साथ हैं, अचानक प्रोग्राम बना, तवियत नासाज़ है इसलिए सोयी हुई हैं, पेनाल्टी सहित रुपये लेकर इनकी टिकेट भी रायपुर तक कि बना दें. नाम श्रीमती आर कुमार लिख दें. आवश्यक कार्यवाही के पश्चात् टी टी ई चला गया. एक कौने में बैठ वह व्यक्ति 'रीडर्स डाईजेस्ट' के पन्ने पलट रहा था. अचानक राधिका उठ बैठी.
"मुझे रंजन कुमार सिंह कहते हैं लोग. मेरा कार्य क्षेत्र फिलहाल रायपुर-मध्य प्रदेश (छत्तीसगढ़ नहीं बना था उस समय) है. मुझे लोग 'कुमार' के नाम से जानते हैं. रायपुर में मैंने कई गतिविधियाँ शुरू कर रखी है पढाई लिखाई, आदिवासियों के उत्थान, उन्नत खेती इत्यादि के विषय में. आप घबराइए नहीं मुझ से जो बन पड़ेगा आपकी सहायता के लिए करूँगा. मुझे खुल कर सारा माज़रा बताइए."

कुमार साहब के शब्द बिलकुल ठोस और अपनत्व कि पुट लिए हुए थे. कनपटियों के पास सफ़ेद बाल उनकी प्रौढ़ अवस्था को बता रहे थे....मोटा सा काले फ्रेम का ऐनक बता रहा थे कि वे एक पढ़े लिखे इंसान है. रौबीला चेहरा आत्मीयता लिए हुए था. कुल मिला कर उनकी उपस्थिति के स्पंदन एक सुकून और सुरक्षा का वातावरण उस कूपे में पैदा कर रहे थे. उनकी 'साल्ट एंड पेप्पर' दाढ़ी मोंछ एक मुस्कान लिए थी. उनकी आँखों में अनकहे आश्वासन भरे हुए थे. पहली बार राधिका को एक मर्द की उपस्थिति में शांति का अनुभव हो रहा था.

राधिका ने कुछ कहा, कुमार साहब ने कुछ सुना......जब जब राधिका चुप हुई, कुमार साहब ने कभी पानी, कभी बिस्किट और कभी सांत्वना भरे शब्द राधिका को पेश किये. कुछ शब्दों में कुछ स्पंदनों से राधिका ने आप बीती बता दी थी और कुमार साहब ने सुन ली थी .

कुमार साहब कह रहे थे, "राधिकाजी जो कुछ आपके साथ हुआ किसी भी दृष्टि से अच्छा नहीं हुआ, किन्तु एक बात अच्छी हुई कि आप आज एक नयी शुरुआत खुद के लिए कर सकती है. प्रभु ने आपको हिम्मत और सहनशीलता दी है. आप ने शिक्षा, मनोविज्ञान और दर्शन जैसे विषयों में बी.एस.सी.(ओनर्स) कि डिग्री गोल्ड मैडल के साथ हासिल की है. बचपन से आपने घर को मेनेज किया है. छोटे छोटे बच्चों को पढ़कर आपने साबित कर दिया है कि आप ने अपनी शिक्षा को व्यवहार में लागू किया है. आपके लिए बहुत सी संभावनाएं फूल मालाएं लिए स्वागत को खडी है....बस आपकी हामी चाहिए." राधिका को स्वयं को भी अपने इन गुणों का एहसास नहीं था. वह तो मंत्र मुग्ध सी कुमार साहब को सुन रही थी.
"देखिये हर अच्छे कम में समय लगता है, हमें अपनी लग्न और मेहनत उसमें लगनी होती है. प्रभु जब हमारी इमानदारी और दृढ संकल्प को देखते हैं तो हमें यथा समय यथेष्ठ फल से नवाजते हैं. हमें बस धैर्य धारण करना होता है और उस पर विश्वाश बनाये रखना होता है." कह कर कुमार साहब ने पानी के कुछ घूँट भरे.
"आपके लिए मेरे दीमाग में एक प्लान है......हम लोग एक स्कूल चलाते है आदिवासी बच्चों के लिए....उसमें एक अध्यापिका कि आवश्यकता है....रहने कि व्यवस्था स्कूल के पास ही हो जायेगी, मेहनताना इतना मिलेगा कि एक इन्सान सादगी से खा पी सकता है. हाँ एक शर्त है आपको हमारी बात माननी होगी."
कुमार साहब इतना कह कर चुप हो गये थे. राधिका आसमंजस में थी, कि ऐसी कौन सी शर्त है जो यह व्यक्ति रखनेवाला है इस उपकार के एवज में. कहीं यहाँ भी पाखंड का बोलबाला है.
राधिका बोली, "जी, आपकी सब बातें मेरे लिए उचित ही लग रही है, किन्तु यह शर्त वाली बात...बिना इसका खुलासा हुए कैसे कह सकती हूँ कुछ." राधिका को लग रहा था कहीं यह व्यक्ति उसकी मजबूरी का फायदा उठाने के लिए भूमिका तो नहीं बना रहा.

कुमार साहब मानो राधिका के मन को पढ़ रहे थे, कहने लगे, "राधिकाजी ! हमें आपकी यह बात बहुत अच्छी लगी कि आप हामी भरने से पहले शर्त जानना चाह रही है. देखिये हमारा इरादा आप पर बहुत बौझा डालने का है.....आपको अपनी मास्टर्स कि पढाई जारी करनी होगी...पत्राचार द्वारा....उसमें भी आपको पूर्ववत् सफलता पानी होगी.....उसके बाद आपको पीएचडी भी करनी होगी. इन सब के लिए आपको कुछ छात्रवृति और कुछ ऋण हमारे संस्थान से मुहैय्या कराया जायेगा. अंधकार को वो ही दूर कर सकता है जो खुद रोशन हो. हमें आशा है हमारी यह शर्त आप को मंज़ूर होगी." फिर उभरा उनका अपनत्व भरा स्वर, " यह कोई अंतिम बात नहीं, यदि आपको नहीं मुआफिक हो तो थोड़ी बहुत तबदीली भी की जा सकती है, आप सोच कर जवाब दीजिये. तब तक मैं खाना लगाता हूँ.
राधिका को लगा उसे कोई देव-वरदान मिल गया हो. उसने कहा, "सर ! आप जो कुछ कह रहे हैं वह शर्त नहीं मेरे पुनर्निमाण कि योजना है, जिसमें शिरकत करना मेरा सौभाग्य होगा."
खाने कि भूख अचानक जग आई थी. लग रहा था भूत के सारे अक्षर मानो उसके जीवन के श्याम पट्ट से मिटने लगे हों और नयी तहरीर लिखि जा रही हो. राधिका को अँधेरी सुरंग के बाहिर रोशनी कि एक लकीर दिखने लगी थी.

खाना खाने के बाद, राधिका लोअर बर्थ पर और कुमार साहब ऊपर कि बर्थ पर सो गये थे. नारी का मन मस्तिष्क बहुत संवेदनशील होता है. नारी पुरुष के मनोभावों को उसकी नज़रों, उसकी बातों, उसकी भाव भंगिमाओं से ताड़ लेती है. राधिका को महसूस हो रहा था कि कुमार साहब जैसे इंसान कि उपस्थिति किसी गैर-मर्द के साथ अकेले रात बिताने का खौफ नहीं एक बहुत ही सुकून और सुरक्षा का सोपान है, जिसे आत्मा महसूस कर सकती है.
दूसरे दिन रायपुर स्टेशन पर कुमार साहब को लेने उनके सचिव गजेन्द्र जोगी आये थे. कुमार साहब ने कहा, "गजेन्द्र ! ये राधिकाजी हैं. हमारे साथ कम करेंगी. इन्हें महिला प्रखंड में शान्तिबेन से मिलवा देना. इनसे जो बात हुए है ये ही तुम्हे बता देंगी और उन्हें भी. नयी हैं, इनका पूरा खयाल रखना. हाँ मुझे तुरत ही विश्वविद्यालय में व्याख्यान देने जाना है, इसलिए मैं अपने कोटेज को चला जाऊंगा ताकि तैयार हो कर वहां समय पर पहुँच सकूँ." गजेन्द्र जीप से राधिका को शन्तिबेन के पास ले जा रहे थे और कुमार साहब अपनी गाड़ी से कोटेज को प्रस्थान कर रहे थे. हाँ उन्होंने राधिका से, "All the best." ज़रूर कहा था उसी गरिमामय मुस्कराहट के साथ.

कुमार साहब का स्वयंसेवी संगठन "आदिवासी मित्र" का हिस्सा बन गयी थी राधिका. यथा समय उस ने MA Phd किया, अपने आपको हृदयतः कुमार साहब के विचारों के क्रियान्वन में लगा दिया. कुमार साहब के प्रति उसके मन में अगाध प्रेम भर गया था. समय समय पर उनसे बहुत कुछ सीखा था उसने....ध्यान कि विधियां....प्राचीन संस्कृति और अध्यात्म का आधुनिकता से सामंजस्य करते हुए अध्ययन, मानवीय संबंधों के भावनात्मक और विवेकपूर्ण पहलुओं का संतुलन, समाज सेवा के myths और वास्तविकताओं का विश्लेषण. राधिका का मन अधिकाधिक कुमार सर के आसपास रहने का होता. उसने उनकी पुस्तकों का संपादन करने का कार्य भर भी स्वयं पर ले लिया. यदा कदा कुमार साहब के अस्वस्थ होने पर उनकी देखभाल करने में उसको बहुत सुकून मिलता. ना जाने क्या क्या कल्पनाएँ खुद को कुमार साहब से जोड़ कर करने लगती.....मानो श्यामपट्ट पर लिखती और मिटा देती.....इस लिखने और मिटाने में भी कितना अनिर्वचनीय सुख मिलता राधिका को.
२००९ के राष्ट्रपति पुरुस्कारों में राधिकाबेन को छत्तीसगढ़ के आदिवासियों के लिए सफलता पूर्वक शिक्षा, रोज़गार, नशामुक्ति, सांस्कृतिक सुरक्षा इत्यादि कार्यक्रमों में असाधारण उपलब्धियों के लिए चुना गया था. राधिका रविशंकर विश्वविद्यालय में दर्शन शास्त्र कि प्रोफ़ेसर भी लग गयी थी और रायपुर को केंद्र बना नाना प्रकार की जनोपयोगी गतिविधियों में स्वयं को लगाये हुए थी.
राधिका ने एक बार फिर सेलफोन कि जानिब मुस्कुरा कर देखा मानो कुमार साहब को मुखातिब हो रही हो. वह कुर्सी से उठी और ड्राईवर को कहा कि गाड़ी निकाले, विश्वविद्यालय जाना है.




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