Saturday, September 5, 2009

क्या देखते हो................

तरसती निगाहों में क्या देखते हो
बरसती घटाओं में क्या देखते हो

सुनना ओ समझना गवारा नहीं है
लरज़ती सदाओं में क्या देखते हो

दिल हुआ जानम पत्थर तुम्हारा
तड़फती इन आहों में क्या देखते हो.

चलना नहीं साथ तुम को गवारा
सरकती इन राहों में क्या देखते हो.

बहारों से तुम दुश्मनी कर रहे हो
मचलती फिजाओं में क्या देखते हो.

खामोशी आवाज़ दे रही है खुदा को
गरज़ती दुआओं में क्या देखते हो.

'महक' से यह महफिल रोशन हुई है
थिरकती शम्माओं को क्या देखते हो.

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