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छोडती है
सुई
साथ
धागे का,
मिलाकर
उसको,
उसके
अपने
परिवार से.....
छोडती है
सुई
साथ
धागे का,
मिलाकर
उसको,
उसके
अपने
परिवार से.....
नहीं ले
सकते
अगन की
लपट को
हाथ में
चाहिए
उसके लिए
कोई टुकड़ा
एक
लकड़ी का,
पाने
निराकार को
रखना होगा
सामने किसी
आकार को…………
तरु का तना
रहता है
मौन
धरे धैर्य
और गहनता,
और
पत्ते ?
चपल
चंचल
अस्थिर से...
देख कर
प्रकोप
ऋतु
पतझड़ का
भाग
किन्तु
तना
रहता है
स्थिर
धीर
वीर
गंभीर
पाने को
उपहार
ऋतु
बसंत से………
चुनने होते हैं
प्रत्येक रचना के
अनुरूप शब्द,
चुस्त
कसे हुए हों
उपनाह
मुस-मुस जायेंगे
सुकोमल पांव
घुट जायेगा
तन-मन,
ढीले होंगे यदि
पदत्राण
होगी स्थिति
डावांडोल,
नहीं बढ़ पाएंगे
कदम…..
जो जानते है
इस सच को
वो हीउठाएंगे
यथोचित माप के संग
कागज़ और कलम……
(उपनाह/पदत्राण=जूते, shoes.)