Thursday, May 27, 2010

मुरली...

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बनी थी
मुरली
रसहीन
बांस से
हो कर स्पर्शित
गोपाल के
रसीले
अधरों से
बन गयी
वह भी
रसवंती....

छीनी थी
प्रियतम
रसपुरुष
योगेश्वर
श्री कृष्ण से
उसको,
बृज किशोरी
राधा ने
समझ कर
सौतन,
आवेश में
प्रमाद में
मति भ्रम में
या..????????????????


(यह एक अधूरी सी पूरी अभिव्यक्ति है...:)

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