Monday, May 17, 2010

सत्य शरीर का...

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शरीर
नहीं
समझता
भाषा
आशा और
निराशा की,
बुद्धि और
विवेक की,
पाप और
पुण्य की,
करणीय और
अकरणीय की,
वह तो
सुनता है और
पहचानता है
केवल,
धड़कने
ह्रदय की...

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