Sunday, May 16, 2010

अंजाम

यह तेरे शगूफे
यह कहकहे
दिखावा है
महज़
जैसे
इनको सुन
मेरा हँसना
और
मुस्कुराना…

इश्क
जरिया नहीं
वक़्त बिताने का,
मोहब्बत
फितरत है
इन्सान की
इन्सानियत से
जुड़ जाने की,
मत कर तू
तौहीन इसकी.

गर
तुझे
समझना है
मुझे
आ मेरे
करीब आ
बिन-बोले
मेरी आँखों में
झांक
जिनमे कुछ
अनकहे बोल
लहरा रहें हैं…….

ठहर
थोडा
चुप होकर
झांक तू
दिल खुद के भी
और
देख क्या
वहां भी
कोई दरिया
ऐसा ही
लहरा रहा है ?

जो कहना है
कह दे
लफ़्ज़ों से या
महज़ आँखों से
'हाँ' हो
या
'ना'
कहीं ना कहीं
इस जानलेवा
अफसाने को
लाना तो है
अंजाम तक...

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