Friday, May 28, 2010

गहरायी तक

# # #
शब्दकार !
बना ले
छैनी
अपनी
कलम को
उकेर
गहरायी तक
शब्दों को;
मिटा सकता है ना
वक़्त
फिरा कर
ऊँगली
अपनी
जो भी
लिखा है
उपरी
सतह पर...........

No comments:

Post a Comment