Saturday, May 29, 2010

संतान सत्य की....

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भोली भाली
सच ने
ना जाने क्यों
अपनी
शांतिमय
पर्ण-कुटीर को
त्याग कर,
आरम्भ
कर दिया है
करना
प्रसव,
अपनी सहोदर
चालाक बहन
झूठ के
राज प्रासाद में.....

विधाता भी
शायद
भूल गया
मार्ग
उसके
घर का,
या रूठ गया है
उस-से;
कर दिया है
बंद
विधि ने
लिखने लेख
भाग्य के
सत्य की
संतान के लिए...

तभी से
औलाद संच की
खा रही है
ठोकरें
दर दर की
भूख और
अभाव से
करते
अनवरत
संघर्ष...

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