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न जाने आज यह कैसा सवाल आया है
बिन बुलाये मेरे दर पर वबाल आया है.
चैन से गुज़रे जा रहे थे दिन-ओ-रात अपने
ख़ुशी के नकाब में कैसा मलाल आया है.
खुद को देंगे सजा जुर्म किया था उस ने
न जाने दिल में मेरे कैसा खयाल आया है.
हर्फ़-ए-शिकायत का किया ना इज़हार कभी
निगाह-ए-यार में क्यूँ रंग-ए-जलाल आया है.
छूटा था हाथ..टूटा था साथ उसका.. उस-से
देखा किया था उसको कैसा बहाल आया है.
(वबाल=संकट, मलाल=दुःख, नकाब=पर्दा
रंग-ए-जलाल=क्रोध का रंग, बहाल=पूर्ववत)
न जाने आज यह कैसा सवाल आया है
बिन बुलाये मेरे दर पर वबाल आया है.
चैन से गुज़रे जा रहे थे दिन-ओ-रात अपने
ख़ुशी के नकाब में कैसा मलाल आया है.
खुद को देंगे सजा जुर्म किया था उस ने
न जाने दिल में मेरे कैसा खयाल आया है.
हर्फ़-ए-शिकायत का किया ना इज़हार कभी
निगाह-ए-यार में क्यूँ रंग-ए-जलाल आया है.
छूटा था हाथ..टूटा था साथ उसका.. उस-से
देखा किया था उसको कैसा बहाल आया है.
(वबाल=संकट, मलाल=दुःख, नकाब=पर्दा
रंग-ए-जलाल=क्रोध का रंग, बहाल=पूर्ववत)
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