# # #
दर्पण देखतो
रीझ्यो छैलो ,
पगड़ी पेंच
संवारे रे,
छिण आई थी
तिलक लगाणे,
देर हुंवती
अणहुन्ती,
पाछी फीरी
दुआरे रे....
____________________________________________________
शब्दार्थ : रिझ्यो=रीझा/खुश हुआ , छैला=बांका मर्द, छिण =क्षण,हुंवती=होते हुए, अणहुन्ती=बेजा/जो नहीं होनी चाहिए, पाछी फिरी=पलट गयी/लौट गयी,दुआरे=द्वारे,
(रईस मर्द आईना देखते देखते अपनी पगड़ी के पेंच सँवारने में लगा रहा , अनुकूल क्षण का आगमन हुआ इस उद्देश्य के साथ कि उसके भाल पर विजय तिलक लगाये, किन्तु फजूल की देर होती देख वह वापस दरवाजे से लौट गयी..अर्थात हम व्यस्त हो जाते हैं निरर्थक कार्य कलापों में और सफलता के लम्हे गुजर जाते हैं/लोट जाते हैं...यह 'नेनो' राजस्थानी और साधुक्कड़ी भाषा का मिला जुला प्रयास है.)
This can be extended as a beautiful prabhaati..
दर्पण देखतो
रीझ्यो छैलो ,
पगड़ी पेंच
संवारे रे,
छिण आई थी
तिलक लगाणे,
देर हुंवती
अणहुन्ती,
पाछी फीरी
दुआरे रे....
________________________________________
शब्दार्थ : रिझ्यो=रीझा/खुश हुआ , छैला=बांका मर्द, छिण =क्षण,हुंवती=होते हुए, अणहुन्ती=बेजा/जो नहीं होनी चाहिए, पाछी फिरी=पलट गयी/लौट गयी,दुआरे=द्वारे,
(रईस मर्द आईना देखते देखते अपनी पगड़ी के पेंच सँवारने में लगा रहा , अनुकूल क्षण का आगमन हुआ इस उद्देश्य के साथ कि उसके भाल पर विजय तिलक लगाये, किन्तु फजूल की देर होती देख वह वापस दरवाजे से लौट गयी..अर्थात हम व्यस्त हो जाते हैं निरर्थक कार्य कलापों में और सफलता के लम्हे गुजर जाते हैं/लोट जाते हैं...यह 'नेनो' राजस्थानी और साधुक्कड़ी भाषा का मिला जुला प्रयास है.)
This can be extended as a beautiful prabhaati..
No comments:
Post a Comment