Tuesday, May 4, 2010

अपना है ना पराया है………

# # #
हुआ था जो
हासिल
ख्वाबों में
उसे हम ने
हकीकतों में
गंवाया है…..

ना छेड़ो
तराना-ए-इश्क
मेरे महबूब !
दर्द को
हम ने
अभी
थपकियाँ दे
सुलाया है…….

तुम आये हो
तवस्सुम है
लबों पे मेरे
यह वह
फूल है
जो तेरी
जुदाई ने
खिलाया है…..

ठोकरें खाई है
खूब हमने
ज़माने में
बचना
इन से हमें
जिंदगानी ने
सिखाया है……..

खेलते है
दिलों से
हर इन्सां,
समझो
‘महक’,
कोई
यहाँ
अपना है ना
पराया है………

No comments:

Post a Comment