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रुक जाओ ऐ जानेजिगर,गुलशन में चहक बाकी है
दूरियां क्यों बढ़ाते हो यूँ, फूलों में महक बाकी है.
लड्खाये मेरे कदमों की देते हैं कसम तुझको
पिलाई तूने आँखों से,उस मय की बहक बाकी है.
बहोत देखें है इसरार.. मोहब्बत में हम ने भी
किताबे जिंदगी का, आखरी तो सबक बाकी है।
हिजाब में रहा कैद हुस्न किसी का तो हुआ क्या
देखा था कभी मंज़र, उसकी तो झलक बाकी है.
प्यासे रहे शब-ओ-दिन, या रब 'महक' हम भी
चौट खाई थी जो दिल पे,उसकी तो कसक बाकी है.
Sunday, May 2, 2010
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