Wednesday, May 26, 2010

लोलुपता ....

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लोलुपता
धन की

यश की
पद की
बनकर जब
विकार व्यथा
लगती है
सताने,
नहीं
कर सकता
बर्दाश्त

कमज़ोर इन्सान
सच्चाई की
रोशनी को....

अपने बर्चस्व को
रखने कायम
लगता कहने
दिन को रात
और
दिवस
रजनी को...

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