Wednesday, May 19, 2010

शम्मा हूँ मैं दुनिया की तेरी....

# # #
शम्मा हूँ मैं
दुनिया की तेरी,
अनदेखी सी
दिन में
और
रातों को
रोशन करने
जलती हुई
पल पल...

नज़रों में तेरी
होती है
हिकारत
दिन के
उजाले में,
रातों के
अँधेरे में
मगर
बह जाती है
क्यूँ
वह
गल गल ?

No comments:

Post a Comment