(सब से पहले पत्रिका का नाम पढ़ा और यह कविता घटित हुई)
# # #
हम
करने लगें हैं
संचय
विष का
कर के
शोषण
एवम्
विखंडन
औरों का,
भूल गये हैं
हम
शायद कि,
करती है
मधुमक्खी
संग्रह
शहद का
किये बिना
नुकसान
तनिक भी
फूलों का....
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हम
करने लगें हैं
संचय
विष का
कर के
शोषण
एवम्
विखंडन
औरों का,
भूल गये हैं
हम
शायद कि,
करती है
मधुमक्खी
संग्रह
शहद का
किये बिना
नुकसान
तनिक भी
फूलों का....
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