Saturday, June 19, 2010

जुगनू और तारे...

(अगला स्तम्भ है 'स्वाति-बूंद' कवि गुरु टेगोर के शब्द हैं वहां, जिन्हें मैंने एक नेनो में तब्दील किया है.)

# # #
बीच
पत्तियों में
चमकते
जुगनू,
डाल रहे हैं
तारों को भी
विस्मय में ...



(प्रत्येक वस्तु का अपना सौन्दर्य और महत्ता होती है.) (मधु संचय सीरिज-जून २०१०.)

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